जब मैं 17 साल का था तो मैंने ग्रुप में पढ़ा था कि यदि आप हर रोज ऐसे जियो जैसे कि यह आपकी जिंदगी का आखरी दिन है तो आप किसी ना किसी दिन सही साबित हो जाओगे यह विचार मेरे दिमाग पर छा गया और तब से मैंने हर सुबह शीशे में खुद से यह सवाल किया है कि अगर यह दिन मेरी जिंदगी का आखरी दिन होता तो क्या मैं आज वह करता जो मैं करने वाला हूं और जब भी लगातार कई दिनों तक जवाब नहीं में होता तब मैं समझ जाता हूं कि कुछ बदलने की जरूरत है कुछ नया करने की जरूरत है स्टीव जॉब्स की इस इस बीच में बहुत ही गहराई है अगर आप इस बात को ध्यान से समझे तो यह आपने कला की ऊर्जा भर देगा और इससे भी ज्यादा ऊर्जावान उनके जीवन की कहानी है यह ऐसी शक्ति जिन्होंने अपने पैसे से प्यार था और नहीं पैसा उनकी पहचान थी बल्कि लीक से हटकर सोचना तथा तकनीक को नए रूप में परिभाषित करना उनके प्रबल व्यक्तित्व की विशेषताएं थी लेकिन स्वयं
जॉब के लिए उनकी जिंदगी कभी आसान नहीं रही उनका प्रारंभिक जीवन काफी भ्रम और उथल-पुथल से भरा हुआ था तो बिना समय गवाए उनके बारे में शुरू से जानते हैं स्टीव जॉब्स का जन्म 24 फरवरी 1955 में कैलिफोर्निया के सैन फ्रांसिस्को में हुआ था उनका वास्तविक नाम इस्टीम पॉलिजॉर्ब था जून को गोद लेने वाले माता-पिता खिला रहा और पॉल जॉब से मिला था दरअसल उनके वास्तविक माता-पिता की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी और वे यह नहीं चाहते थे क्योंकि बच्चे को भी अभावग्रस्त जिंदगी में जीना पड़े इसलिए उन्होंने स्टीव को एक ऐसे दंपत्ति को सौंपने का फैसला किया जो उनकी अच्छी परवरिश कर अच्छी शिक्षा दे सकें उनके पिता पॉल जॉब्स एक इलेक्ट्रिकल वर्कशॉप चलाते थे इसलिए स्टीव का ज्यादातर समय अपने पिता के साथ उनकी मदद करने में व्यतीत होता यही वह माहौल था जिसने उन्हें चीजों को सही रूप में जोड़कर नई चीजों को बनाना सिखाया और फिर धीरे-धीरे इलेक्ट्रॉनिक उनका शौक बन गया प्राथमिक विद्यालय में 4 साल पढ़ने के बाद किसी कारणवश उनके पिता को दूसरे शहर लॉस ऑल्टो में शिफ्ट होना पड़ा और यहां उनका दाखिला होमस्ट्रीट माध्यमिक विद्यालय
मैं करा दिया गया जहां उनकी मुलाकात स्टीव वोजनियाक से हुई जो आगे चलकर एप्पल कंपनी में साझेदार भी बने वासनिक का दिमाग भी काफी तेज था और उन्हें भी इलेक्ट्रॉनिक से बहुत प्यार था शायद इसीलिए दोनों में जल्द ही दोस्ती हो गई स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद स्टीव जॉब्स ने आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिए रीड कॉलेज में एडमिशन तो ले लिया लेकिन इस कॉलेज की फीस इतनी महंगी थी कि उनके माता-पिता के लिए उसे दे पाना संभव नहीं हो पा रहा था और स्टीव जॉब्स को भी अपने माता-पिता का पैसा ही बर्बाद करना अच्छा नहीं लगा क्योंकि उन्हें उस पढ़ाई में ज्यादा दिलचस्पी नहीं थी इसीलिए 6 महीने बाद ही उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया जिसके बाद एक आधिकारिक छात्र के रूप में वे केवल अपने मनपसंद विषय कैलीग्राफी की क्लास लेने लगे यह ऐसा समय था जब इस टीम के पास बिल्कुल पैसे नहीं होते थे यहां तक कि अपने हॉस्टल के कमरे का किराया भी नहीं दे सकते थे जिससे वे अपने दोस्त के कमरे में फर्श पर सोते थे और खाना खाने के लिए हर रविवार 7 मील दूर पैदल चलकर मंदिर जाते हैं ताकि हफ्ते में एक बार पेट भर खाना खा सकें उसके बाद वर्ष 1972 में जॉब्स को पहली
नौकरी एक वीडियो गेम्स बनाने वाली कंपनी अटारी में मिली वहां उन्होंने कुछ वर्षों तक काम किया लेकिन जैसा कि होता है हर इंसान की जिंदगी का एक आध्यात्मिक पक्ष भी होता है और इसे पाने के लिए हर किसी का तरीका भी अलग स्टीव के आध्यात्मिक पूर्ति का स्थान भारत था और जिसके लिए उन्हें पैसे बचाने शुरू किए सन 1974 में वह भारत अपने दोस्त डेनियल कोर्ट के के साथ है जो बाद में जाकर एप्पल कंपनी के एम्पलाई भी बने भारत में भैंस 7 महीने रहे और बौद्ध धर्म को पढ़ा और समझा जिसके बाद भी वापस अमेरिका चले गए और फिर से अटारी कंपनी में काम करने लगे और यहीं पर स्टीव जॉब्स और स्टीवर्स ने एक बार फिर अच्छे दोस्त बन गई दोनों ने मिलकर काम करने का सोचा और जहां दोनों की रुचि इलेक्ट्रॉनिक में थी तो कंप्यूटर बनाना उनके लिए सही फैसला था और दोनों ने मिलकर अपने पापा के छोटे से गहरा से अपने जुनून को हकीकत में बदला उस वक्त इस चीज की उम्र मात्र 21 साल थी और इस काम को आगे बढ़ाने के लिए उन्हें इंटेल कंपनी के रिटायर इंजीनियर माइक मर्कविले से सहयोग राशि प्राप्त हुई और काफी मेहनत के बाद उन्होंने अपना पहला कंप्यूटर
सैन फ्रांसिस्को के होम वीडियो कंप्यूटर क्लब में पेश किया जिसे लोगों ने खूब पसंद किया जिसके बाद 12 दिसंबर 1980 को पहली बार कंपनी का आईपीओ बाजार में उतारा गया जिससे एप्पल एक सार्वजनिक कंपनी बन गई और एप्पल किस आईपीओ ने विश्व के किसी भी कंपनी से ज्यादा लगभग 300 व्यक्तियों को रातों रात करोड़पति बना दिया उसके बाद जब एप्पल था और लीसा डेक्सटॉप बाजार में लांच हुआ तो लोगों ने उन्हें ज्यादा पसंद नहीं किया और कंपनी घाटे में चली गई और दुर्भाग्य से इसका जिम्मेदार इस टीम को ठहराया गया और 17 सितंबर 1985 में कंपनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर ने इस टीम को कंपनी से निकाल दिया जिसके बाद वह टूट चुके थे सफलता उन्हें खाए जा रही थी लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और अपनी नेक्स्ट इन क्रांति कंपनी खोली और इस कंपनी से उन्होंने इतने पैसे कमाए क्यों नहीं सो 86 में उन्नत 10 मिलियन डॉलर से एक ग्राफिक्स कंपनी खरीदी जिसका नाम उन्होंने पिक्चर रखा जिसमें उन्होंने अच्छी सफलता हासिल की और इधर स्टीव जॉब्स के बिना एप्पल कंपनी घाटे में चल रही थी तब एप्पल ने 477 मिलियन डॉलर से नेक्स्ट कंपनी को खरीद
दीया और स्टीव जॉब्स बन गई एप्पल के सीईओ जिसके बाद उन्होंने एप्पल के अनोखे प्रोडक्ट निकाले जैसे आईपॉड आइट्यूंस और 2007 में एप्पल का पहला मोबाइल फोन निकाला जिसने मोबाइल फोन के बाजार में क्रांति ला दी थी जो आज भी लोगों के दिलों में छाया हुआ है 5 अक्टूबर 2011 को मात्र 56 वर्ष की आयु में कैंसर की बीमारी के चलते उनका निधन हो गया और अगले ही दिन कैलिफ़ोर्निया के राज्यपाल द्वारा उस दिन को स्टीव जॉब्स डे के रूप में मनाने की घोषणा कर दी गई थिंक डिफरेंट यह स्टीव का मूल मंत्र था कितना छोटा सा शब्द लेकिन कितनी गहराई से लदे हुए किसी शब्द के भरोसे उन्होंने उद्योग जगत को बदला उनका हमेशा से यह मानना था कि जीवन में यदि हमें सफल होना है तो किसी का भी इंतजार किए बिना अकेला चलना सीखना होगा
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